रूठजाती हैं पत्नी हमारी, जबभी हम बात करे मौत के ;
कोइतो समझाए उन्हें, ये लब्ज हैं बस अपने ओकात के ।
नजाने कितने अरमान, ख्वाइस भी बहुत है;
नाखुश ये जिन्दगी की, हासिल तो बस मौत है।
सब समेटने की चाहमैं, मन तो बस मदहोस है;
चंचल है चारो तरफ, अंदर कोई मेरे खामोस है।
कोई देखके भी सब दृस्य, कुछ समझ नहीं पाया है;
जिंदगी है हक़ीक़त या ये, मौतका ही रंगीन साया है
कोइतो समझाए उन्हें, ये लब्ज हैं बस अपने ओकात के ।
नजाने कितने अरमान, ख्वाइस भी बहुत है;
नाखुश ये जिन्दगी की, हासिल तो बस मौत है।
सब समेटने की चाहमैं, मन तो बस मदहोस है;
चंचल है चारो तरफ, अंदर कोई मेरे खामोस है।
कोई देखके भी सब दृस्य, कुछ समझ नहीं पाया है;
जिंदगी है हक़ीक़त या ये, मौतका ही रंगीन साया है